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Showing posts with the label कृपालु महाराज के प्रवचन

जगद्गुरु कृपालु परिषद की परिवर्तनकारी और देखभाल करने वाली सेवा

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अपने कई धर्मार्थ प्रयासों के माध्यम से, जगद्गुरु कृपालु परिषद एक ऐसा संगठन है जो लोगों के जीवन को बेहतर बनाने और उनकी मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है। अपने निर्माता जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की शिक्षाओं से प्रेरित होकर, JKP जरूरतमंद लोगों को चिकित्सा देखभाल, शिक्षा और महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करके आशा की किरण बन गया है। JKP ने प्रेम, करुणा और निस्वार्थ सेवा पर जोर देकर, समुदायों का उत्थान करके और सकारात्मक बदलाव को बढ़ावा देकर हजारों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। वंचितों के लिए स्वास्थ्य सेवा वंचितों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए JKP का समर्पण इसकी प्रमुख पहलों में से एक है। JKP ने स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच के बिना व्यक्तियों द्वारा सामना की जाने वाली भयानक परिस्थितियों को महसूस करने के बाद कई स्थानों पर अस्पताल बनाए हैं। ये अस्पताल होम्योपैथी, प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद और एलोपैथी सहित निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करते हैं। इन अस्पतालों के माध्यम से, हजारों लोगों की जान बचाई गई है और अनगिनत लोगों के दुख कम हुए हैं। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की शिक्षाओं स...

मनोहारी झाँकियाँ: श्री कृष्ण जन्माष्टमी एवं श्री राधाष्टमी महोत्सव पर जगद्‌गुरु कृपालु परिषत् के आश्रमों में सजाई गईं विभिन्न झाँकियाँ

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  अजन्मा जनमेड ब्रज महें आय। इस झाँकी में कृष्ण जन्म का अतीव ही सजीव चित्रण प्रस्तुत किया गया है। सर्वप्रथम कारावास में भगवान् श्री कृष्ण ने वसुदेव एवं देवकी को अपने चर्तुभुज रूप में दर्शन दिये पश्चात् छोटे से शिशु बनकर जन्म लिया। जन्म लेते ही कारागार के समस्त द्वार खुल गये एवं समस्त पहरेदार भी गये। वसुदेव जी छोटे से गोपाल को भीषण वर्षा में यमुना पार कर गोकुल ले जा रहे हैं। माँ यमुना ठाकुर जो के चरण परखारने हेतु अपना जलस्तर लगातार बढ़ा रही हैं। शेषनाग भी प्रभु की वर्षा से रक्षा कर रहे हैं। वसुदेव जी ठाकुर जी को माता यशोदा के निकट सुलाकर योगमाया को अपने साथ ले आये हैं। द्वार इक योगी 'अलख' पुकार। भगवान् शंकर का बाल योगी बनकर छोटे से कनौया के दर्शन हेतु माता यशोदा के द्वार पर जाना एवं नन्दलाल के दर्शन की याचना करना। मैया द्वारा अपने लाल के दर्शन करवाने की अत्यन्त हो रमणीक झाँको का चित्रण किया है। नीको लागे मैया कर खायें ग्रास श्याम। भोले भाले सजीले गोपाल मैया की गोद में बैठे हैं। नन्हें नन्हें हाथों में छोटी सी मुरली है। मैया के एक हाथ में माखन का कटोरा है एवं दूसरे हाथ में मैया ...

श्री कृपालु जी महाराज की पवित्र धरोहर: गुरुधाम भक्ति मंदिर

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  भक्ति मन्दिर, प्रेम मन्दिर, कीर्ति मन्दिर ये तीन मंदिर तो हमारे गुरुवर, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदान की गयी अनमोल धरोहर है, परन्तु जहाँ के काल-कण में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की स्मृतियों साकार स्वरूप में विराजमान हैं, वो है भक्ति धाम की पवित्र धरा पर भक्ति मन्दिर के ठीक सामने स्थापित गुरुधाम भक्ति मंदिर । सफेद इटैलियन करारा मार्बल से निर्मित इस भव्य स्मारक का प्राण प्रतिष्ठा समारोह व उद्घाटन दिनांक १३, १४ व १५ मार्च २०२१ को जगद्‌गुरु श्री कृपालु जी महाराज की तीनों सुपुत्रियों सुश्री विशाख्या त्रिपाठी जी, सुत्री श्यामा त्रिपाठी जी एवं सुश्री कृष्णा त्रिपाठी जी की उपस्थिति व मार्गदर्शन में सम्पूर्ण विधि-विधान से सम्पन्न हुआ। गुरु धाम का शिलान्यास १० मई २०१४ को जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की तीनों सुपुत्रियों द्वारा सम्पन्न हुआ। १७ जुलाई २०१६ को मन्दिर के शिखर पर कलश स्थापना का भव्य समारोह धूमधाम से सम्पन्न हुआ। गुरुधाम मन्दिर के उ‌द्घाटन हेतु सम्पूर्ण कृपालु ग्राम की भव्य ढंग से सुसज्जित किया गया, जिसकी छवि अनुपमेय थी। द्वार पर विशाल कलश, तोरण, आदि की ...
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कलियुग के अराजक और आध्यात्मिक रूप से चुनौतीपूर्ण समय में, संकीर्तन या दिव्य नामों का जाप आशा और मोक्ष की किरण के रूप में उभरता है। पापपूर्ण प्रवृत्तियों और बाहरी विकर्षणों में वृद्धि की विशेषता वाला यह काल आध्यात्मिक साधकों के लिए महत्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। हालाँकि, एक श्रद्धेय आध्यात्मिक गुरु जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज इस बात पर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं कि संकीर्तन, रूपध्यान (प्रेमपूर्ण स्मरण) के साथ मिलकर, इस युग में दिव्य कृपा प्राप्त करने का सबसे प्रभावशाली मार्ग क्यों है। संकीर्तन की प्रभावकारिता संकीर्तन को कलियुग में सबसे सरल और सबसे प्रभावी आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में सराहा जाता है। जबकि ध्यान, तपस्या और अनुष्ठान जैसे अन्य आध्यात्मिक अनुशासन मौजूद हैं, वे अक्सर कठोर प्रयास और असाधारण शुद्धता की मांग करते हैं, जो नैतिक और आध्यात्मिक गिरावट के इस युग में चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसके विपरीत, संकीर्तन सभी के लिए सुलभ है, चाहे किसी की योग्यता या आध्यात्मिक स्थिति कुछ भी हो। इसमें पवित्र नामों का सामूहिक जाप और गायन शामिल है, मुख्य रूप से श्री राधा कृष्ण के...

काशीविद्वत्परिषत् द्वारा जगद्गुरूत्तम पद से विभूषित पंचम मूल जगद्गुरु: जगद्‌गुरु श्री कृपालु जी महाराज (सन् 1922 - 2013)

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  जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का जन्म 1922 में शरत्पूर्णिमा की शुभ रात्रि में भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त के प्रतापगढ़ जिले के कृपाली धाम मनगढ़ ग्राम में सर्वोच्च ब्राह्मण कुल में हुआ। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा मनगढ़ एवं कुण्डा में सम्पन्न हुई। पश्चात् इन्होंने इन्दौर, चित्रकूट एवं वाराणसी में व्याकरण, साहित्य तथा आयुर्वेद का अध्ययन किया। 16 वर्ष की अत्यल्पायु में चित्रकूट में शरभंग आश्रम के समीपस्थ बीहड़ वनों में एवं वृन्दावन में वंशीवट के निकट जंगलों में वास किया। श्रीकृष्ण प्रेम में विभोर भावस्थ अवस्था में जो भी इनको देखता वह आश्चर्यचकित होकर यही कहता कि यह तो प्रेम के साकार स्वरूप हैं, भक्तियोगरसावतार हैं। उस समय कोई यह अनुमान नहीं लगा सका कि ज्ञान का अगाध-अपरिमेय समुद्र भी इनके अन्दर छिपा हुआ है क्योंकि प्रेम की ऐसी विचित्र अवस्था थी कि शरीर की कोई सुधि-बुधि नहीं थी, घंटों-घंटों सूछित रहते। कभी उन्मुक्त अट्टहास करते तो कभी भयंकर रुदन। खाना- पीना तो जैसे भूल ही गये थे। नेत्रों से अविरल अश्रु धारा प्रवाहित होती रहती थी, कभी किसी कटीली झाड़ी में वस्त्र उलझ जाते, तो कभी किसी पत...